आज हमने फिर से एक कमाल का करिश्मा देखा
ख़ुश्क, प्यासी, तपती धरती के सीने मे,
अचानक पता नहीं कहाँ से कुछ बादलों ने
ढ़ेर सारा बारिश का पानी उढ़ेल दिया
टिप टिप पड़ती बूंदों ने जैसे धरती को फिर से जवाँ कर दिया
उसकी झुरिआं कुछ ही पलों में खो सी गईं
उसकी खुशबू चंद ही मिनटों में बदल सी गयी
फिर हवा चली, पेड़ भी झूमे, मस्त झूमे
पत्तियों ने भी पक्षियों के साथ मिलकर खूब संगीत बनाया
मानो सारी फिज़ा में एक रुमानी सी छा गयी हो
दिल मे आया की कैसे बांध लूँ इन पलों को अपने तकिये से
और सो जायूँ उसपे सर रख कर
या पी लूँ इन बारिश की बूंदों को, और हमेशां के लिए अपना बना लूँ
फ़िर एक बिजली कौंधी, बादल गड़गड़ाये
और दिल खोल के बरसे
जैसे अपना सब कुछ लुटा रहे हों
जैसे पूरी धरती में बाँट रहें हों अपने को
जैसे सब की रुमानियत में ही उनकी रुहानियत भी छिपी हो
वाह! एक बड़ा गहरा राज़ खोल गए ये बादल आज
सिखा गए, की बांटने से ही तुम्हारी रुहानियत भी खिलेगी
यूँ तो सब अकेले, प्यासे भटक ही रहे हैं
तुम अपने हृदय के बादलों से
बस सब पर प्रेम की वर्षा कर दो
और फ़िर से एक बार इस धरती के ज़ख्मो को भर दो
बरसो, खूब बरसो, तब तक बरसो
जब तक बारिश की एक बूँद भी तुम्हारे भीतर शेष है
रुको मत, डरो मत, अनन्त सागरों का जल तुम्हे भरने को तत्पर है
बरसो, खूब बरसो और प्रेम की गंगाओं को लबालब भर दो
क्योंकि, आज हमने फ़िर से एक कमाल का करिश्मा देखा।