आज एक आकाश नीचे उतर आया
करने आच्छादित मुझे, मेरे उपरान्त भी ,
अस्तित्व हुआ तरल झीनी चादर सा,
चित्त हुआ सरल , जो था कातर सा,
तन मन हुए भारहीन ,
निज पर की सीमा मिटी,
संकल्प विकल्प सारहीन ,
चेतना की सब धाराएं अंतर को प्रवाहित सी ,
कुण्डलिनी ज्यूँ स्वयं की धुरी पर समाहित सी ,
प्रेम बना दृष्टि , संवाद भी !
प्रतीक्षा बनी स्वभाव ….
आज एक आकाश नीचे उतर आया …