मैं तुझसे पा गया इतना , अब और क्या माँगू ?
कि दामन भर गया मेरा, अब और क्या माँगू ?
हद-ए-नज़र तक है यहाँ आलम मुफ़लिसी का
मैं इतनी रौनकों से घिरा, अब और क्या माँगू ?
भरे जा झोलियाँ उनकी दिलों में जिनके ग़ुरबत है हुआ मैं शाह शाहों का ,अब और क्या माँगू ?
लुटा दे दौलतें उन पर जिन्हें दरकार हो उसकी ,
झलक मैं पा गया तेरी, अब और क्या माँगू ?
वो पण्डे मौलवी बतलाने राह जन्नत की आये थे,
मैं पाया रहबरी तेरी , अब और क्या माँगू ?
नज़र तेरी, जुबां तेरी, हवस तेरी, समझ तेरी,
मेरा होना ही तुझसे है , अब और क्या माँगू ?