धड़कते दिलों की एक किताब
पन्ने तो सफ़ेद थे पर स्याही लाल थी
शब्द अभी भी ज़िंदा थे उसमे
और उन शब्दों में छुप्पी कुछ यादें थीं
बातें तो पुरानी थीं पर अभी भी ज़िन्दा थीं
धड़क रहीं थीं, साफ़ थीं , जैसे बस अभी की ही हों
और उन यादों से कुछ खुश्बू सी आ रही थी
थोड़ा टटोला तो पाया की खुश्बू तो मोहब्बत की थी
यानी वो मोहब्बत तो आज भी ज़िंदा थी
राह देख रही थी, कि कब मैं उसे छुऊं, सेहलाऊं और फिर से अपना बना लूँ
मग़र किसकी मोहब्बत की खुश्बू है ये
उनकी जो कहते हैं कि मुझसे मोहब्बत करते हैं
या मेरी ही खुद की
या उस रब की जिसने हम सब को मोहब्बत करना सिखाया
प्रशन गहरा था, मगर साफ़ था
गंगा की तरह पाक था
उथले पानी मे तो उत्तर नहीं थे इसके
ग़हरी छलांग की हिम्मत जुटानी थी
मणि तो सागर की गहराईयों में ही मिलती है
यूँ लहरों पे तो सिर्फ़ सफ़ेद झाग ही हाथ आती है
कुछ बेपरवाह निकले इस उत्तर की खोज मे
कूदे सागर मे , चूमा उन गहराईयों को , अपनाया उन अंधेरों को
और मणि को पाते ही विलीन हो गये
अजब सी घटना थी ये
आज सुबह इक ठंडी हवा के साथ उनकी खुश्बू फिर से आयी
ओर धीरे से बोली की सफ़ेद पन्नों में कुछ राज़ छिपे हैं
जो सिर्फ डूबने से मिलते हैं , स्याही तो सिर्फ उलझाने का काम करती है
क्योंकि तस्वीरें तो रंग बदलतीं हैं
हाँ, हर वक़्त, बस रंग बदलतीं हैं
धड़कते दिलों की एक किताब
पन्ने तो सफ़ेद थे पर स्याही लाल थी