मन के अनुसंधान समझ, शब्दों के परिधान पहन …ये कौन आह जगी ?
शीतलता से उत्तप्त, सभी स्मृतियों से विगत, क्षितिज पे जागती जोत सी ….ये कौन आह जगी ?
बोध के वर्तुल से मुक्त, मात्र चैतन्य से युक्त, जलाती उष्णता में हल्की बयार सी…. ये कौन आह जगी ?
स्वत्व को विस्तीर्ण करती, अहम् जीर्ण जीर्ण करती, माँ की फटकार सी ….ये कौन आह जगी ?
स्थित अपनी नग्नता में, निश्चिन्त अपनी मग्नता में , शिशु की किलकार सी…ये कौन आह जगी ?