नाच ओ मन के मयूरा नाच !
चेतना के ज्वार पे चढ़ ,
महालय के स्वाद को चख ,
निस्तब्धता के घुंघरुओं को जांच ,
नाच ओ मन के मयूरा नाच !
काल वर्णी मेघ छाए,
मित्रता के हाथ आए ,
साँच को आती नहीं है आँच !
नाच ओ मन के मयूरा नाच !
माया पाश क्षीण पड़े ,
सुर नए विस्तीर्ण गढ़े,
कर्म विगत लेखनी को बाँच !
नाच ओ मन के मयूरा नाच !