उठूँ तुझे छूने को, लालायित मन से आऊँ ,
पा के तुझे प्रगाढ़ विश्राम में ,निश्चिंत !
क्या करूं अतिक्रमण ,ठिठक के रह जाऊं ,
करवट से तेरी उठी हलचल के स्पंदन में ही,…
अनुभूत हो तेरा स्पर्श, मैं तृप्त लौट जाऊं !
Featured Poetry Omendra Ratnu उठूँ तुझे छूने को
उठूँ तुझे छूने को, लालायित मन से आऊँ ,
पा के तुझे प्रगाढ़ विश्राम में ,निश्चिंत !
क्या करूं अतिक्रमण ,ठिठक के रह जाऊं ,
करवट से तेरी उठी हलचल के स्पंदन में ही,…
अनुभूत हो तेरा स्पर्श, मैं तृप्त लौट जाऊं !
सब लुट गया तो क्या, तू अब भी है
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